
इलाहाबाद हाई कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐसे मामले में फैसला सुनाया, जिसने सबको हैरान कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे खींचने की कोशिश करना बलात्कार की कोशिश नहीं माना जाएगा। यह फैसला 17 मार्च 2025 को आया और इसे “गंभीर यौन उत्पीड़न” की श्रेणी में रखा गया, लेकिन बलात्कार की कोशिश से अलग कर दिया गया।
फैसले पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
इस फैसले के बाद से ही समाज में बहस शुरू हो गई है। कई लोगों का मानना है कि यह निर्णय महिलाओं की सुरक्षा को कमजोर करता है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। लोग पूछ रहे हैं कि अगर यह बलात्कार की कोशिश नहीं है, तो फिर कानून में इसकी सही परिभाषा क्या होनी चाहिए?
कानूनी और सामाजिक नजरिया
कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट का फैसला तकनीकी रूप से सही हो सकता है, क्योंकि यह कानून की मौजूदा परिभाषाओं पर आधारित है। लेकिन आम जनता इसे समझ पाने में असमर्थ है और इसे महिलाओं के खिलाफ अपराधों को हल्का करने वाला कदम मान रही है। यह अंतर कानून और जनभावना के बीच की खाई को उजागर करता है।
भविष्य पर प्रभाव
इस फैसले ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कानूनी ढांचे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह अपराधियों को प्रोत्साहन देगा या कानून में बदलाव की मांग को मजबूत करेगा? यह समय के साथ ही स्पष्ट होगा। फिलहाल, यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
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