नई दिल्ली, 22 मार्च 2025: दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी बंगले से 15 करोड़ रुपये नकद बरामद होने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने त्वरित कार्रवाई शुरू कर दी है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने शुक्रवार को इस मामले की आंतरिक जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को सौंप दी। अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस पर आगे का फैसला लेगा।
2018 में CBI की FIR में नाम
जस्टिस वर्मा का नाम इससे पहले 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल से जुड़े एक घोटाले में भी सामने आ चुका है। उस वक्त CBI ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की थी। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने शिकायत की थी कि शुगर मिल ने किसानों के लिए जारी किए गए 97.85 करोड़ रुपये के लोन का दुरुपयोग किया। जस्टिस वर्मा उस समय कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। CBI ने जांच शुरू की, लेकिन यह धीमी पड़ गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने जांच दोबारा शुरू करने का आदेश दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, और जांच बंद हो गई।

होली की रात आग से खुला राज
14 मार्च को होली की रात करीब 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के बंगले में आग लगी। उस समय जज शहर से बाहर थे, जबकि उनका परिवार घर पर मौजूद था। दिल्ली अग्निशमन विभाग ने आग बुझाई, लेकिन इस दौरान बंगले से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई। सूत्रों के मुताबिक, करीब 15 करोड़ रुपये का कैश मिला। इस घटना की सूचना दिल्ली पुलिस ने सरकार और CJI को दी।
फायर सर्विस चीफ का बयान
दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा, “मैंने यह नहीं कहा कि जज के घर से कैश नहीं मिला।” इससे पहले 21 मार्च को कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उनके हवाले से कहा गया था कि आग बुझाने के दौरान कोई नकदी नहीं मिली। गर्ग ने इन दावों का खंडन किया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बयान जारी कर कहा कि जस्टिस वर्मा के घर से कैश मिलने की खबरों को लेकर गलत सूचनाएँ और अफवाहें फैलाई जा रही हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने इसकी आंतरिक जांच शुरू की है और रिपोर्ट CJI को सौंप दी गई है। साथ ही, जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव इससे अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तबादला और जांच दो अलग-अलग मुद्दे हैं।
कॉलेजियम ने किया ट्रांसफर
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट, वापस ट्रांसफर करने का फैसला लिया। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि यह तबादला कैश बरामदगी से जुड़ा नहीं है। यह प्रस्ताव कॉलेजियम की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है।
पारदर्शिता की मांग
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, “कॉलेजियम को इस घटना की पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। कैश कैसे और किन परिस्थितियों में मिला, यह सबको पता चलना चाहिए। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जज को भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है।” उन्होंने कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल उठाए।
संसद में हंगामा
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया और न्यायिक जवाबदेही की बात की। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ महाभियोग के लंबित नोटिस का भी जिक्र किया। वहीं, भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर लिखा, “जस्टिस वर्मा 2012-13 में यूपी के मुख्य स्थायी अधिवक्ता थे, जब अखिलेश यादव CM थे। क्या उनसे कोई सवाल करेगा?”
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार का विरोध
जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर पर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने कड़ा ऐतराज जताया। एसोसिएशन ने कहा, “क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट कूड़ेदान है? भ्रष्टाचार के आरोपी जज को यहाँ भेजना सजा है या इनाम?” अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा, “अगर जस्टिस वर्मा यहाँ जॉइन करते हैं, तो हम उनका स्वागत नहीं होने देंगे। कोर्ट में काम नहीं होगा।”
भ्रष्टाचार पर बहस
रिटायर्ड जज जस्टिस एसएन ढींगरा ने कहा, “न्यायपालिका में भ्रष्टाचार लंबे समय से है। आम आदमी इसका शिकार होता है। जज के घर कैश मिला, तो सुप्रीम कोर्ट को FIR की इजाजत देनी चाहिए थी।” सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा, “जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देना चाहिए।”
यह मामला न्यायपालिका की साख पर सवाल उठा रहा है। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के अगले कदम पर टिकी है।
Leave a Reply