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संविधान में कौन सर्वोच्च? आर्टिकल 142 और उप-राष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर विवाद | New PaperDoll

संविधान में कौन सर्वोच्च? आर्टिकल 142 और उप-राष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर विवाद

आइए, इस पूरे विवाद को आसान भाषा में समझते हैं और जानते हैं कि आर्टिकल 142 क्या है, संविधान में कौन सर्वोच्च है, और क्या अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दे सकती हैं।

सवाल-1: सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया?

तमिलनाडु विधानसभा ने 2020 से 2023 के बीच 12 विधेयक पारित किए थे, जिन्हें मंजूरी के लिए राज्यपाल आरएन रवि के पास भेजा गया। लेकिन राज्यपाल ने इन विधेयकों पर कोई कार्रवाई नहीं की और इन्हें अटका दिया।

  • अक्टूबर 2023: तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
  • राज्यपाल की कार्रवाई: राज्यपाल ने 10 विधेयक बिना हस्ताक्षर लौटा दिए और 2 विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज दिए।
  • दोबारा पारित: सरकार ने 10 विधेयक फिर से पारित कर राज्यपाल को भेजे, लेकिन इस बार राज्यपाल ने सभी विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज दिए।

8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि राज्यपाल का विधेयक अटकाना असंवैधानिक है। कोर्ट ने आदेश दिया कि इन 10 विधेयकों को पारित माना जाए, भले ही राज्यपाल ने हस्ताक्षर न किए हों। यह पहली बार था जब बिना राज्यपाल की मंजूरी के विधेयक पारित हुए।

सुप्रीम कोर्ट ने समय सीमा भी तय की:

  • राज्यपाल: विधेयक मिलने पर 1 महीने में कार्रवाई करनी होगी।
  • राष्ट्रपति: अगर विधेयक उनके पास जाता है, तो 3 महीने में फैसला लेना होगा। देरी होने पर कारण बताना होगा।
  • अदालत का रास्ता: अगर समय सीमा में कार्रवाई न हो, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।

सवाल-2: उप-राष्ट्रपति धनखड़ ने आर्टिकल 142 पर क्या कहा?

17 अप्रैल 2025 को उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिला विशेष अधिकार अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध परमाणु मिसाइल बन गया है। जज ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे हैं।”

इस बयान पर विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया:

  • डीएमके सांसद तिरुचि शिवा: “संविधान सर्वोच्च है। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की अपनी-अपनी शक्तियां हैं। धनखड़ का बयान अनैतिक है।”
  • वकील कपिल सिब्बल: “न्यायपालिका ही एकमात्र संस्था है, जिस पर देश भरोसा करता है। आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार देता है। राष्ट्रपति सिर्फ प्रतीकात्मक प्रमुख हैं, जो कैबिनेट की सलाह पर काम करते हैं।”

सवाल-3: आर्टिकल 142 क्या है?

आर्टिकल 142 भारतीय संविधान का एक अनूठा प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला देने का अधिकार देता है। यह तब लागू होता है जब मौजूदा कानून पर्याप्त न हों या अस्पष्ट हों।

  • इतिहास: संविधान सभा ने बिना किसी बहस के आर्टिकल 142 को मंजूरी दी थी। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने इसे “सेफ्टी वॉल्व” बताया, जो असाधारण मामलों में न्याय सुनिश्चित करता है।
  • उदाहरण:
    • अयोध्या मामला (2019): सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत विवादित जमीन ट्रस्ट को सौंपी।
    • सहारा-सेबी केस: निवेशकों को पैसा लौटाने के लिए सहारा की संपत्ति बेचने का आदेश।
    • भोपाल गैस त्रासदी: मुआवजा देने के लिए आर्टिकल 142 का इस्तेमाल।

सवाल-4: भारत में सबसे ऊपर कौन? क्या अदालतें राष्ट्रपति को आदेश दे सकती हैं?

भारत में संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद, राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट। संविधान विशेषज्ञ विराग गुप्ता के अनुसार:

  • शक्तियों का पृथक्करण: कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की अपनी-अपनी सीमाएं हैं। कोई भी संविधान से ऊपर नहीं है।
  • राष्ट्रपति को आदेश: सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 के तहत राष्ट्रपति को संविधान सम्मत आदेश दे सकता है, खासकर अगर राष्ट्रपति का फैसला संवैधानिक दायरे से बाहर हो।
  • सीमाएं: सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति की जगह काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, कोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की जगह खुद फैसला नहीं ले सकता।

सवाल-5: आर्टिकल 142 के फैसलों को पलटा जा सकता है?

हां, सुप्रीम कोर्ट के आर्टिकल 142 के तहत लिए गए फैसलों को निम्न तरीकों से चुनौती दी जा सकती है:

  1. पुनर्विचार याचिका: सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर फैसले में संवैधानिक त्रुटि का हवाला दिया जा सकता है।
  2. बड़ी बेंच: अगर दो फैसले आपस में टकराते हों, तो तीन जजों की बेंच गठित की जा सकती है।
  3. संविधान पीठ: पांच या अधिक जजों की बेंच नया फैसला दे सकती है।

विराग गुप्ता कहते हैं, “आर्टिकल 142 के तहत लिए गए फैसले सामान्य फैसलों के बराबर ही होते हैं। इन्हें अलग नहीं माना जाता।”


सवाल-6: क्या सरकार आर्टिकल 142 को खत्म कर सकती है?

नहीं, सरकार आर्टिकल 142 को पूरी तरह हटा नहीं सकती, क्योंकि यह संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है।

  • संशोधन की संभावना: सरकार आर्टिकल 368 के तहत संशोधन कर इसकी सीमाएं तय कर सकती है, ताकि न्यायपालिका की शक्तियों का दुरुपयोग रोका जा सके।
  • सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: अगर सरकार ऐसा संशोधन करती है, तो सुप्रीम कोर्ट इसे चुनौती दे सकता है और रद्द कर सकता है।

विराग गुप्ता का कहना है, “सरकार आर्टिकल 142 में स्पष्टता लाने के लिए नियम बना सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि इसका इस्तेमाल केवल संवैधानिक दायरे में हो।”

निष्कर्ष

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