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कश्मीर में आतंकवाद उद्योग: सैलरी और प्रमोशन के साथ आतंकी बन रहे युवा | New PaperDoll

कश्मीर में आतंकवाद उद्योग: सैलरी और प्रमोशन के साथ आतंकी बन रहे युवा

कश्मीर में आतंकवाद उद्योग: सैलरी और प्रमोशन के साथ आतंकी बन रहे युवा

आतंकी संगठन युवाओं को सैलरी, प्रमोशन और ट्रेनिंग देकर भर्ती कर रहे हैं। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने इस कड़वी सच्चाई को उजागर किया है। सुरक्षा एजेंसियों ने 14 स्थानीय आतंकियों की सूची जारी की है, जिनमें से 12 ने 2019 में आर्टिकल-370 हटने के बाद आतंकवाद का रास्ता चुना।

कश्मीर में आतंकवाद उद्योग का ढांचा

आतंकी संगठन कॉर्पोरेट कंपनियों की तरह काम करते हैं। वे युवाओं को लालच, गुस्से या दबाव के जरिए भर्ती करते हैं। एक पूर्व आतंकी ने बताया कि 2003 में 14 साल की उम्र में वह पाकिस्तान चला गया था। वहां उसे 2-3 महीने की ट्रेनिंग दी गई। शुरुआत में उसे 1,000-1,500 रुपये महीने मिलते थे, जो बाद में बढ़कर 20,000-22,000 रुपये हो गए। कश्मीर में आतंकवाद उद्योग में भर्ती, ट्रेनिंग और रैंकिंग का सिस्टम पुलिस और सेना जैसा ही है। आतंकियों को डिस्ट्रिक्ट कमांडर, ऑपरेशनल कमांडर जैसे पद दिए जाते हैं।

पहलगाम हमले का सच

पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने 14 आतंकियों की पहचान की। इनमें 19 साल का आदिल रहमान और 25 साल का आसिफ अहमद शेख लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के डिस्ट्रिक्ट कमांडर हैं। 28 साल का जुबैर अहमद वानी हिजबुल मुजाहिदीन का चीफ ऑपरेशनल कमांडर है। जांच में पता चला कि बायसरन घाटी में हमले के लिए आतंकियों ने रूट मैप तैयार किया था। इसमें फारुख अहमद टेडवा का नाम सामने आया, जो कश्मीर के पहाड़ी रास्तों का विशेषज्ञ है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से ऑपरेट करता है।

कैसे भर्ती होते हैं युवा?

आतंकी संगठन कम उम्र के युवाओं को निशाना बनाते हैं। कई बार नाबालिग भी उनके जाल में फंस जाते हैं। उदाहरण के लिए, आदिल अहमद ठोकर, जो साइंस ग्रेजुएट और उर्दू में MA था, 2017 में जमीन विवाद के बाद गुस्से में 2018 में आतंकी बन गया।

  • आतंकी संगठन युवाओं को ट्रेनिंग के बाद रैंक देते हैं।
  • लोकल सपोर्ट के जरिए हमले की योजना बनाई जाती है।
  • पाकिस्तान से लॉजिस्टिक और हथियारों की सप्लाई होती है।
आतंकियों का नेटवर्क और रणनीति

फारुख अहमद टेडवा जैसे आतंकी कश्मीर के पहाड़ी इलाकों की गहरी जानकारी रखते हैं। वे मोबाइल ऐप्स के जरिए स्थानीय आतंकियों से संपर्क में रहते हैं। उनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि हमले के बाद भी उनकी सटीक लोकेशन का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। आर्टिकल-370 हटने के बाद लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियां कम हुईं, जिसके बाद साउथ कश्मीर में द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) नाम का नया संगठन बना। यह लश्कर के लिए काम करता है और कम उम्र के युवाओं को जोड़ता है।

सुरक्षा बलों की रणनीति

सुरक्षा बलों ने आतंकियों को उनकी सक्रियता के आधार पर A++, A+, A, B और C कैटेगरी में बांटा है। रिटायर्ड ब्रिगेडियर विजय सागर धीमान के अनुसार, चीफ ऑपरेशनल कमांडर पूरे राज्य की जिम्मेदारी संभालता है, जबकि डिस्ट्रिक्ट कमांडर जिले की। A++ और A+ कैटेगरी के आतंकी सबसे खतरनाक होते हैं।

आतंकवाद से वापसी की कहानी

एक पूर्व आतंकी ने बताया कि 2003 में वह 14 साल की उम्र में PoK गया था। कई साल कैंप में रहने के बाद उसे समझ आया कि पाकिस्तान की हालत खराब है। 2012 में वह 300 अन्य लोगों के साथ भारत लौटा और सरेंडर कर दिया। अब वह मजदूरी करके सामान्य जीवन जी रहा है।

निष्कर्ष

कश्मीर में आतंकवाद उद्योग एक संगठित ढांचे के साथ काम कर रहा है, जो युवाओं को गलत रास्ते पर ले जा रहा है। सुरक्षा बलों की सख्ती और जागरूकता से ही इस समस्या का समाधान संभव है। सरकार और समाज को मिलकर युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए काम करना होगा।

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