कश्मीर की वादियों में हुआ दर्दनाक हादसा
जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम में 22 अप्रैल का दिन हमेशा के लिए काले अक्षरों में लिख गया। बायसरन घाटी में हुए इस आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। यह घटना सिर्फ 13 मिनट तक चली, लेकिन इसके निशान आज भी लोगों के दिलों में गहरे हैं।
बायसरन घाटी – मिनी स्विट्जरलैंड का दर्दनाक दिन
श्रीनगर से 90 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम का बायसरन इलाका अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर है। हरी-भरी घास के मैदान, देवदार के घने जंगल और बर्फ से ढकी पहाड़ियां इसे मिनी स्विट्जरलैंड का नाम देती हैं। लेकिन 22 अप्रैल को यह जगह खुशियों से भरे पर्यटकों के लिए मौत का जाल बन गई।
हमले की शुरुआत – दोपहर के 2 बजे
22 अप्रैल की दोपहर करीब 2 बजे जब पर्यटक घाटी में मस्ती कर रहे थे, तभी तीन आतंकियों ने जंगल से आकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। पहली गोली 2:20 बजे चली थी। शुरुआत में किसी को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।
लोगों को लगा कि कहीं पटाखे फूट रहे हैं। लेकिन जब लाशें गिरने लगीं, तब सबको एहसास हुआ कि यह आतंकी हमला है। खुले मैदान में छिपने की कोई जगह नहीं थी, इसलिए लोग भागने की कोशिश करने लगे।
आतंकियों का क्रूर तरीका
आतंकियों ने लोगों से नाम और धर्म पूछा। जो लोग कलमा नहीं पढ़ सके, उन्हें निर्दयता से गोली मार दी गई। हमले में मारे गए 26 लोगों में से ज्यादातर के साथ यही हुआ था।
शहीदों की कहानियां
हरियाणा के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और हिमांशी करनाल के रहने वाले लेफ्टिनेंट विनय अपनी नवविवाहित पत्नी हिमांशी के साथ हनीमून मनाने आए थे। सिर्फ 6 दिन पहले ही उनकी शादी हुई थी। आतंकी ने जब धर्म पूछा और विनय ने हिंदू होना बताया, तो उसे तुरंत गोली मार दी गई।
कर्नाटक के मंजूनाथ राव का परिवार शिवमोगा के मंजूनाथ राव अपनी पत्नी पल्लवी और बेटे के साथ पहली बार कश्मीर घूमने आए थे। आतंकियों ने पत्नी के सामने ही उन्हें गोली मार दी। पल्लवी को आतंकी ने कहा था, “जाकर मोदी को बताओ।”
सूरत के शैलेश कलाथिया अपना 44वां जन्मदिन मनाने आए शैलेश को उनकी पत्नी शीतल के सामने गोली मार दी गई। शीतल ने बताया कि आतंकियों ने हिंदू और मुसलमान अलग करके, जो कलमा नहीं पढ़ सके उन्हें मार दिया।
वीरता की मिसाल – आदिल हुसैन
इस हमले में मारे गए इकलौते कश्मीरी मुस्लिम आदिल हुसैन थे। वे टूरिस्ट गाइड थे और एक महिला पर्यटक की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। उन्होंने कहा था, “यह मेरी बहन है, मैं इसे अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा।”
बचाव के हीरो
सज्जाद अहमद भट पहलगाम के स्थानीय निवासी सज्जाद ने हमले की खबर सुनते ही मौके पर पहुंचकर घायलों को बचाया। उन्होंने एक बच्चे को कंधे पर उठाकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
नजाकत अहमद शाह टूरिस्ट गाइड नजाकत ने अपनी जान की परवाह न करते हुए 11 पर्यटकों को बचाया। इनमें छत्तीसगढ़ के राजनेता भी शामिल थे। उन्होंने कहा, “ये मेरे भरोसे आए थे, भले मेरी जान चली जाए, इन्हें कुछ नहीं होने दूंगा।”
आतंकियों की पहचान
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार हमले में तीन आतंकी शामिल थे:
- एक स्थानीय आतंकी आदिल हुसैन (अनंतनाग का)
- दो पाकिस्तानी आतंकी हाशिम मूसा और अली
हाशिम मूसा पाकिस्तानी स्पेशल सर्विस फोर्स का पूर्व कमांडो है और लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करता है।
हमले के बाद के हालात
पहलगाम इस हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना ने 7 मई की रात ऑपरेशन सिंदूर चलाया। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और पाकिस्तान में 9 जगह आतंकी कैंपों पर हमला किया गया।
सुरक्षा व्यवस्था में सुधार की जरूरत
यह घटना दिखाती है कि पर्यटन स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाने की जरूरत है। खासकर उन जगहों पर जहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
निष्कर्ष
पहलगाम आतंकी हमला एक दर्दनाक याद है कि आतंकवाद किसी भी वक्त, कहीं भी हमला कर सकता है। लेकिन इस त्रासदी में स्थानीय लोगों द्वारा दिखाई गई वीरता और मानवता की भावना सभी के लिए प्रेरणा है।
उन 26 निर्दोष लोगों की याद हमेशा हमारे दिलों में रहेगी, जिन्होंने खुशियां मनाने आकर अपनी जान गंवाई। उनके परिवारों के दुख को समझा जा सकता है, लेकिन उनका दर्द कभी भरा नहीं जा सकता।

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