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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन: 19 साल बाद महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का संकेत | New PaperDoll

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन: 19 साल बाद महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का संकेत

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन: 19 साल बाद महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का संकेत

महाराष्ट्र की सियासत में नया तूफान आने वाला है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन की खबर ने सबको चौंका दिया है। 19 साल की तल्खी के बाद, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (UBT) के नेता उद्धव ठाकरे ने एकसाथ आने की बात कही है। दोनों का मानना है कि मराठी अस्मिता और महाराष्ट्र की भलाई के सामने उनके झगड़े छोटे हैं। यह खबर 19 अप्रैल 2025 को राज के एक इंटरव्यू और उद्धव के बयान से सामने आई।

राज ठाकरे बोले: महाराष्ट्र सबसे ऊपर

राज ठाकरे ने एक यूट्यूब इंटरव्यू में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा:

हमारे बीच सियासी मतभेद और झगड़े हैं, लेकिन ये सब महाराष्ट्र के हित के सामने कुछ नहीं। मराठी लोगों की भलाई के लिए एक होना कोई मुश्किल नहीं। यह मेरा निजी स्वार्थ नहीं, बस इच्छा की बात है।

राज ने सुझाव दिया कि सभी मराठी दलों को मिलकर एक पार्टी बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उद्धव के साथ पहले काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी, और अब भी वह तैयार हैं, बशर्ते दूसरा पक्ष राजी हो।

उद्धव का जवाब: मैं झगड़े में नहीं

उद्धव ठाकरे ने अपने एक भाषण में राज की बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा:

मेरी तरफ से कोई झगड़ा नहीं था। मैं महाराष्ट्र के लिए छोटी बातें भूलने को तैयार हूं। मराठी अस्मिता और मुंबई की पहचान मेरी प्राथमिकता है।

उद्धव ने मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव पर जोर दिया। उनकी पार्टी BMC में मजबूत है, और वह इसे और मजबूत करना चाहते हैं।

गठबंधन की जरूरत क्यों?

2024 के विधानसभा चुनाव में दोनों नेताओं की पार्टियां फिसल गईं। उद्धव की शिवसेना (UBT) को 20 सीटें मिलीं, और राज की MNS एक भी सीट नहीं जीत सकी। राज के बेटे अमित ठाकरे माहिम से हार गए। इस हार ने दोनों को अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए एकजुट होने पर मजबूर किया।

BMC चुनाव में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन एकनाथ शिंदे की शिवसेना और बीजेपी को टक्कर दे सकता है। दोनों मराठी वोटों को एकजुट कर मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाना चाहते हैं।

दोनों के बीच तकरार की कहानी

राज और उद्धव के बीच झगड़ा 2003 में शुरू हुआ। बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। राज, जो 1989 से पार्टी को मजबूत कर रहे थे, इस फैसले से नाराज थे। 2005 तक उद्धव का पार्टी पर कब्जा हो गया। राज को लगा कि उनकी और उनके समर्थकों की अनदेखी हो रही है।

27 नवंबर 2005 को राज ने शिवसेना छोड़ दी। 9 मार्च 2006 को उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई। MNS को मराठी मानुस की पार्टी बताकर उन्होंने महाराष्ट्र की पहचान को अपना मुख्य मुद्दा बनाया। इसके बाद दोनों भाइयों के बीच सियासी और निजी रिश्ते बिगड़ गए।

झगड़े की वजहें:

  • उत्तराधिकार का झगड़ा: बालासाहेब ने उद्धव को चुना, जिससे राज नाखुश थे।
  • पार्टी में अनदेखी: राज को फैसलों और कार्यकर्ताओं से दूर रखा गया।
  • सोच का अंतर: राज ने मराठी मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाया, उद्धव ने गठबंधन सियासत चुनी।

राज ठाकरे के और बयान

इंटरव्यू में राज ने और भी बातें कहीं:

  • एकनाथ शिंदे पर: शिंदे का शिवसेना तोड़ना सियासत का हिस्सा था, लेकिन मैं किसी के मातहत काम नहीं करूंगा।
  • बीजेपी के साथ गठबंधन: मेरी सोच बीजेपी से अलग है, लेकिन सियासत में कुछ भी हो सकता है।
  • मराठी एकता: सभी मराठी दलों को एक पार्टी बनाकर मराठी अस्मिता को मजबूत करना चाहिए।

गठबंधन की राह में रुकावटें

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन आसान नहीं होगा। कुछ मुश्किलें हैं:

  • सोच का अंतर: उद्धव MVA (कांग्रेस, NCP) के साथ हैं, लेकिन राज इन दलों से दूरी रखते हैं।
  • शिंदे का विरोध: शिंदे गुट का कहना है कि यह गठबंधन नहीं हो सकता।
  • संजय राउत की शर्त: उद्धव के करीबी संजय राउत ने कहा कि राज को बीजेपी से रिश्ता तोड़ना होगा।

2024 में दोनों का बुरा हाल

2024 के विधानसभा चुनाव में महायुति (बीजेपी, शिंदे शिवसेना, NCP) ने 230 सीटें जीतीं। MVA को 46 सीटें मिलीं, जिसमें शिवसेना (UBT) को 20 और MNS को कोई सीट नहीं। माहिम में अमित ठाकरे की हार राज के लिए झटका थी। इस हार ने दोनों को गठबंधन पर सोचने के लिए मजबूर किया।

गठबंधन का क्या होगा?

अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे गठबंधन बनता है, तो यह महाराष्ट्र की सियासत को बदल सकता है। BMC चुनाव में दोनों शिंदे और बीजेपी को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। यह गठबंधन मराठी वोटों को एक करने की कोशिश है। लेकिन इसका नतीजा दोनों नेताओं की इच्छा और जनता की पसंद पर निर्भर है।

महाराष्ट्र की सियासत की ताजा खबरों के लिए न्यूज चैनल और अखबार देखते रहें।

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