मामला क्या है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के आर्टिकल 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछकर एक नया संवैधानिक बहस छेड़ दी है। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद उठे, जिसमें कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयक मंजूरी की समयसीमा तय की थी। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे सकती है? आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं।
आर्टिकल 143 क्या है?
संविधान का आर्टिकल 143 राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगने का अधिकार देता है। यह दो प्रकार के मामलों में लागू होता है:
- क्लॉज-1: राष्ट्रपति किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक सवाल पर राय मांग सकते हैं, भले ही वह किसी मौजूदा विवाद से जुड़ा न हो।
- क्लॉज-2: यदि कोई विवाद 26 जनवरी 1950 से पहले की संधि या समझौते से संबंधित है, तो राष्ट्रपति राय मांग सकते हैं।
राष्ट्रपति मुर्मू ने क्लॉज-1 के तहत 14 सवाल पूछे हैं, जो राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक हस्तक्षेप, और समयसीमा जैसे मुद्दों पर केंद्रित हैं।
सवाल क्यों उठे?
यह मामला तमिलनाडु के 12 विधेयकों से शुरू हुआ, जिन्हें 2020-2023 के बीच विधानसभा ने पारित किया। राज्यपाल आरएन रवि ने इन पर कोई कार्रवाई नहीं की। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को फैसला सुनाया कि राज्यपाल का विधेयक अटकाना असंवैधानिक है और 10 विधेयकों को पारित माना जाए। कोर्ट ने समयसीमा भी तय की:
- राज्यपाल को विधेयक पर 1 महीने में फैसला लेना होगा।
- राष्ट्रपति को 3 महीने में फैसला लेना होगा, अन्यथा कारण बताना होगा।
इस फैसले ने सवाल उठाया कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को भी निर्देश दे सकती है, जिसके जवाब में राष्ट्रपति ने आर्टिकल 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी।
क्या सुप्रीम कोर्ट जवाब देने को बाध्य है?
नहीं, क्लॉज-1 के तहत सुप्रीम कोर्ट राय देने के लिए बाध्य नहीं है। अगर कोर्ट को लगता है कि सवाल अनुचित हैं, तो वह राय देने से मना कर सकती है। उदाहरण के लिए:
- 1993 में राम मंदिर विवाद पर कोर्ट ने राय देने से इनकार किया था।
- 2002 में गुजरात चुनाव मामले में भी कोर्ट ने रेफरेंस को गलत ठहराया था।
वकील विराग गुप्ता के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट राय दे या न दे, राष्ट्रपति या केंद्र सरकार उस राय को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। फिर भी, यह राय संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण होती है।
सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे सकती है?
हां, आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने की शक्ति है। यह शक्ति कोर्ट को असाधारण परिस्थितियों में राष्ट्रपति या राज्यपाल को निर्देश देने की अनुमति देती है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इसे संविधान का “सेफ्टी वॉल्व” बताया था। हालांकि, कोर्ट राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता, जैसे कि जजों की नियुक्ति में राष्ट्रपति की मंजूरी को दरकिनार करना।
मौजूदा कानून पर्याप्त न हों, तो आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट के लिए सेफ्टी वॉल्व है। – डॉ. बी.आर. अंबेडकर
केंद्र सरकार की भूमिका
वकील विराग गुप्ता के अनुसार, केंद्र सरकार इस मामले के जरिए आर्टिकल 142 को चुनौती देना चाहती है। इसके पीछे चार संभावित कारण हैं:
- तमिलनाडु के फैसले को अन्य राज्यों पर लागू होने से रोकना।
- मामले को रेफरेंस के जरिए होल्ड करना।
- यह दिखाना कि सुप्रीम कोर्ट सरकार से ऊपर नहीं है।
- आर्टिकल 142 के दुरुपयोग पर सवाल उठाना।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी 17 अप्रैल 2025 को आर्टिकल 142 की आलोचना की थी, इसे “न्यूक्लियर मिसाइल” करार देते हुए कहा था कि जज “सुपर पार्लियामेंट” की तरह काम कर रहे हैं।
आगे क्या होगा?
विराग गुप्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट राय देने से मना कर सकती है, क्योंकि तमिलनाडु मामले में केंद्र को पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। अगर कोर्ट राय देती है, तो केंद्र-राज्य संबंध, संघीय व्यवस्था, और आर्टिकल 142 के उपयोग पर बहस हो सकती है।
पहले भी हुए हैं ऐसे मामले
आर्टिकल 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी राय दी है:
- दिल्ली लॉज एक्ट (1951): विधायिका को कुछ शक्तियों का डेलिगेशन करने की अनुमति।
- केरल शिक्षा बिल (1957): अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
- इंदौर नगर निगम (2006): नीतिगत मामलों में न्यायिक दखल नहीं होना चाहिए।
भारत में सबसे ऊपर कौन?
भारत में संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद या राष्ट्रपति। आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को भी निर्देश दे सकती है, बशर्ते यह संविधान के दायरे में हो। हालांकि, कोर्ट राष्ट्रपति की शक्तियों को पूरी तरह हड़प नहीं सकता।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के 14 सवालों ने आर्टिकल 143 और आर्टिकल 142 के बीच एक नई संवैधानिक बहस शुरू कर दी है। यह मामला केंद्र-राज्य संबंधों, न्यायपालिका की शक्ति, और संवैधानिक संतुलन पर गहरे सवाल उठाता है। सुप्रीम कोर्ट की राय इस मामले में निर्णायक हो सकती है।
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