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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर साधा निशाना: अनुच्छेद 142 को बताया न्यूक्लियर मिसाइल | New PaperDoll

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर साधा निशाना: अनुच्छेद 142

उपराष्ट्रपति धनखड़ सुप्रीम कोर्ट पर भड़के: अनुच्छेद 142 को न्यूक्लियर मिसाइल बताया

नई दिल्ली में गुरुवार को उपराष्ट्रपति धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर तीखी टिप्पणी करते हुए सुर्खियों में आए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय की गई थी। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 को “लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल” करार दिया और कहा कि जज “सुपर संसद” की तरह काम कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?

8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपालों के पास कोई वीटो पावर नहीं है। कोर्ट ने तमिलनाडु के 10 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा रोके जाने को अवैध ठहराया। साथ ही, यह भी तय किया कि:

  • समय सीमा: राज्यपाल को विधानसभा से भेजे गए बिल पर एक महीने में फैसला लेना होगा।
  • राष्ट्रपति की जिम्मेदारी: राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य है।
  • न्यायिक समीक्षा: अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
  • देरी का कारण: यदि राष्ट्रपति 3 महीने में फैसला नहीं लेते, तो देरी का कारण बताना होगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति बार-बार बिल को वापस नहीं भेज सकते। यदि विधानसभा दोबारा बिल पास करती है, तो राष्ट्रपति को अंतिम फैसला लेना होगा।

धनखड़ ने क्या कहा?

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा:

  • “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं, जबकि अन्य लोग इसका पालन करने की।”
  • “अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज कानून बना रहे हैं, कार्यपालिका का काम कर रहे हैं और सुपर संसद की तरह व्यवहार कर रहे हैं।”
  • “न्यायपालिका की कोई जवाबदेही नहीं है, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।”

उन्होंने लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि सभी संस्थाओं को अपनी संवैधानिक सीमाओं में रहना चाहिए।

जस्टिस वर्मा मामले पर सवाल

उपराष्ट्रपति धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपनी टिप्पणी को और गहरा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के मामले का जिक्र किया। उन्होंने पूछा:

  • “जस्टिस वर्मा के घर अधजली नकदी मिलने के मामले में 7 दिन तक कोई जानकारी क्यों नहीं दी गई? अगर यह किसी आम आदमी का मामला होता, तो अब तक FIR हो चुकी होती।”
  • “सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए तीन जजों की कमेटी बनाई, लेकिन इसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है। कमेटी सिर्फ सिफारिश कर सकती है, कार्रवाई का अधिकार संसद के पास है।”

धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका हमेशा सम्मान की प्रतीक रही है, लेकिन इस मामले में देरी से लोग असमंजस में हैं।

अनुच्छेद 142 क्या है?

संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत कोर्ट किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश या निर्देश दे सकता है। यह एक अनूठा प्रावधान है, जो कोर्ट को व्यापक विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है।

हालांकि, धनखड़ ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि इसका दुरुपयोग लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान पहुंचा सकता है।

पूर्व कानून मंत्री की प्रतिक्रिया

पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह फैसला केंद्र सरकार को राज्यों के बिलों में जानबूझकर देरी करने से रोकेगा। सिब्बल ने बताया कि अटॉर्नी जनरल ने समय सीमा तय करने का विरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

क्यों है यह विवाद?

उपराष्ट्रपति धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के इस टकराव ने शक्तियों के विभाजन और संवैधानिक संतुलन पर बहस छेड़ दी है। धनखड़ का मानना है कि न्यायपालिका अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह विधायी प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए कदम उठा रहा है।

  • धनखड़ का तर्क: राष्ट्रपति और राज्यपाल संवैधानिक पद हैं, और उनकी स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
  • कोर्ट का रुख: राष्ट्रपति के पास अनिश्चितकाल तक बिल लटकाने का अधिकार नहीं है, और उनकी कार्रवाइयों की समीक्षा हो सकती है।

निष्कर्ष

उपराष्ट्रपति धनखड़ सुप्रीम कोर्ट विवाद ने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में शक्तियों के संतुलन पर सवाल उठाए हैं। धनखड़ की टिप्पणी जहां न्यायपालिका की जवाबदेही पर सवाल उठाती है, वहीं सुप्रीम कोर्ट का फैसला विधायी प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता लाने की कोशिश है। यह बहस आगे कैसे बढ़ती है, यह देखना होगा।

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