आर्टिकल 142 विवाद: संविधान में कौन सर्वोच्च, क्या सुप्रीम कोर्ट दे सकती है राष्ट्रपति को आदेश?
17 अप्रैल 2025 को उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्टिकल 142 विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला बोला। उन्होंने संविधान के आर्टिकल 142 को लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ “परमाणु मिसाइल” करार दिया। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी सवाल उठाया कि जब राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट उन्हें आदेश कैसे दे सकता है? यह आर्टिकल 142 विवाद तब शुरू हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर समय सीमा के साथ फैसला लेने का निर्देश दिया। आइए, इस पूरे मामले को आसान भाषा में समझते हैं।
तमिलनाडु मामला: आर्टिकल 142 विवाद की जड़
आर्टिकल 142 विवाद की शुरुआत तमिलनाडु विधानसभा से हुई। 2020 से 2023 के बीच विधानसभा ने 12 विधेयक पारित किए, जिन्हें मंजूरी के लिए राज्यपाल आरएन रवि के पास भेजा गया। लेकिन राज्यपाल ने इन विधेयकों को दबाकर रखा और कोई कार्रवाई नहीं की। अक्टूबर 2023 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
राज्यपाल ने 10 विधेयकों को बिना साइन किए लौटा दिया और 2 को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। सरकार ने 10 विधेयकों को दोबारा पारित कर राज्यपाल को भेजा, लेकिन उन्होंने फिर इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि राज्यपाल का विधेयक अटकाना असंवैधानिक है। कोर्ट ने इन 10 विधेयकों को पारित मान लिया, जो बिना राज्यपाल की मंजूरी के लागू हो गए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: समय सीमा का नियम
आर्टिकल 142 विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ राज्यपाल को फटकार लगाई, बल्कि राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय की। कोर्ट ने कहा:
- राज्यपाल को विधानसभा से मिले विधेयक पर 1 महीने में फैसला लेना होगा।
- अगर विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है, तो राष्ट्रपति को 3 महीने में निर्णय करना होगा। ज्यादा समय लगने पर कारण बताना होगा।
- अगर समय सीमा में कार्रवाई नहीं होती, तो राज्य सरकार अदालत जा सकती है।
संविधान में पहले यह स्पष्ट नहीं था कि विधेयक पर कितने समय में फैसला लेना है। सुप्रीम कोर्ट ने “जितनी जल्दी हो सके” को परिभाषित कर दिया, जिसने आर्टिकल 142 विवाद को जन्म दिया।
उप-राष्ट्रपति का बयान: आर्टिकल 142 पर सवाल
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 17 अप्रैल को आर्टिकल 142 विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की। उन्होंने कहा, “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। आर्टिकल 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।”
धनखड़ का कहना था कि राष्ट्रपति का पद संवैधानिक रूप से सर्वोच्च है, और वे संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का उन्हें समय सीमा देना गलत है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी कहा, “राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। फिर कोर्ट उन्हें निर्देश कैसे दे सकता है?”
विपक्ष की प्रतिक्रिया: संविधान है सर्वोच्च
आर्टिकल 142 विवाद पर विपक्ष ने धनखड़ के बयान को गलत ठहराया। डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने कहा, “संविधान में विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका की शक्तियां अलग-अलग हैं, लेकिन संविधान ही सर्वोच्च है। धनखड़ की टिप्पणियां अनुचित हैं।”
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, “राष्ट्रपति प्रतीकात्मक प्रमुख हैं और कैबिनेट की सलाह पर काम करते हैं। आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय का अधिकार देता है। आज देश में अगर किसी संस्थान पर भरोसा है, तो वो न्यायपालिका है।”
आर्टिकल 142 क्या है?
आर्टिकल 142 विवाद का केंद्र संविधान का अनुच्छेद 142 है। यह सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए विशेष शक्तियां देता है। अगर मौजूदा कानून किसी मामले में न्याय नहीं दे पाते, तो कोर्ट इस अनुच्छेद के तहत कोई भी आदेश दे सकता है।
डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने इसे संविधान सभा में “सेफ्टी वॉल्व” बताया था। उन्होंने कहा था कि असाधारण मामलों में, जहां कानून पर्याप्त नहीं है, यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को न्याय देने की शक्ति देता है। यह शक्ति सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या करने और अंतिम फैसला देने वाली संस्था बनाती है।
भारत में सर्वोच्च कौन? राष्ट्रपति को आदेश दे सकती है कोर्ट?
आर्टिकल 142 विवाद ने यह सवाल उठाया कि भारत में सबसे ऊपर कौन है? संविधान विशेषज्ञ विराग गुप्ता के अनुसार:
- भारत में संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद या राष्ट्रपति।
- सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 142 के तहत पूर्ण न्याय के लिए आदेश देने का अधिकार है, जिसमें राष्ट्रपति को निर्देश देना भी शामिल है।
- हालांकि, कोर्ट राष्ट्रपति की जगह काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, कोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी को बायपास नहीं कर सकता।
ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, लेकिन भारत में संविधान की सर्वोच्चता है। इसलिए राष्ट्रपति का पद भी संविधान के दायरे में है।
क्या आर्टिकल 142 के फैसले पलटे जा सकते हैं?
आर्टिकल 142 विवाद में सवाल उठा कि क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले बदले जा सकते हैं? इसके 3 तरीके हैं:
- पुनर्विचार याचिका: कोर्ट के फैसले में बड़ी संवैधानिक गलती होने पर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की जा सकती है।
- बड़ी बेंच: अगर दो अलग-अलग फैसले एक-दूसरे से टकराते हैं, तो तीन या ज्यादा जजों की बेंच बनाकर नया फैसला लिया जा सकता है।
- संविधान पीठ: पांच या अधिक जजों की बेंच नए सिरे से सुनवाई कर फैसला दे सकती है।
विराग गुप्ता कहते हैं कि आर्टिकल 142 के तहत लिए गए फैसले सामान्य फैसलों जैसे ही होते हैं। एक बार फैसला हो जाए, तो उसे बदलना मुश्किल है।
क्या सरकार आर्टिकल 142 को हटा सकती है?
आर्टिकल 142 विवाद में यह भी सवाल है कि क्या सरकार इस अनुच्छेद को खत्म कर सकती है? जवाब है- नहीं। आर्टिकल 142 संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है। अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करके इसे हटाने की कोशिश भी सुप्रीम कोर्ट में रद्द हो सकती है।
हालांकि, विराग गुप्ता के मुताबिक, सरकार सेपरेशन ऑफ पावर के तहत आर्टिकल 142 में स्पष्ट सीमाएं तय कर सकती है। इससे भविष्य में न्यायपालिका के अतिक्रमण को रोका जा सकता है।
समरी: आर्टिकल 142 विवाद की 5 बड़ी बातें
- तमिलनाडु मामला: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के विधेयक अटकाने को अवैध बताया और राष्ट्रपति के लिए 3 महीने की समय सीमा तय की।
- धनखड़ का बयान: उप-राष्ट्रपति ने आर्टिकल 142 को “न्यूक्लियर मिसाइल” कहा, बोले- कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकता।
- आर्टिकल 142: सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय के लिए विशेष शक्तियां देता है, जिसे अंबेडकर ने “सेफ्टी वॉल्व” बताया।
- संविधान सर्वोच्च: भारत में संविधान सबसे ऊपर है, राष्ट्रपति और कोर्ट दोनों इसके दायरे में हैं।
- फैसले बदलना: आर्टिकल 142 के फैसले पुनर्विचार याचिका, बड़ी बेंच, या संविधान पीठ से बदले जा सकते हैं।
और भी महत्वपूर्ण खबरें
राजस्थान धूलभरी हवा: जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर में पारा 3 डिग्री गिरा, 14 शहरों में राहत
Leave a Reply