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कपिल सिब्बल: राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया, धनखड़ के जजों पर सवाल गलत | New PaperDoll

कपिल सिब्बल: राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया, धनखड़ के जजों पर सवाल गलत | New PaperDoll

नई दिल्ली, 18 अप्रैल 2025: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल के बीच एक नया विवाद छिड़ गया है। धनखड़ ने 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों पर फैसला लेने की समय सीमा तय की गई थी। जवाब में कपिल सिब्बल ने कड़ा पलटवार करते हुए कहा कि भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है और जजों पर सवाल उठाना संविधान के खिलाफ है। सिब्बल ने 1975 के इंदिरा गांधी केस का जिक्र कर धनखड़ को उनकी दोहरी बात का आइना दिखाया।

धनखड़ का बयान और सिब्बल की आपत्ति

17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं और अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल “लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल” बन गया है। धनखड़ ने जजों को “सुपर पार्लियामेंट” की तरह काम करने का आरोप लगाया और दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले में FIR न होने पर भी सवाल उठाए।

इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को कहा, “मैं धनखड़ के बयान से हैरान और दुखी हूं। भारत में राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के मुखिया हैं, जो मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं। अगर कार्यपालिका अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएगी, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।” सिब्बल ने जोर देकर कहा कि आज देश में सबसे भरोसेमंद संस्था न्यायपालिका है।

इंदिरा गांधी केस का जिक्र

सिब्बल ने 1975 के इंदिरा गांधी केस का हवाला देते हुए धनखड़ पर तंज कसा। उन्होंने कहा, “1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले से इंदिरा गांधी की रायबरेली सीट से सांसदी रद्द की थी। तब धनखड़ को एक जज का फैसला मंजूर था, लेकिन अब दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।” सिब्बल ने कहा कि अगर धनखड़ को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दिक्कत है, तो वे अनुच्छेद 143 के तहत सलाह मांग सकते हैं या रिव्यू याचिका दायर कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?

8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम गवर्नर मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि राज्यपाल के पास बिलों पर वीटो पावर नहीं है। कोर्ट ने तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि द्वारा 10 बिलों को रोकने को अवैध ठहराया। साथ ही, राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिलों पर तीन महीने में फैसला लेने का निर्देश दिया। इस फैसले ने राष्ट्रपति की “पूर्ण वीटो” शक्ति को भी सीमित कर दिया।

सिब्बल का तर्क: न्यायपालिका का सम्मान जरूरी

सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय के लिए आदेश देने का अधिकार है। उन्होंने धनखड़ के “सुपर पार्लियामेंट” वाले बयान को असंवैधानिक करार दिया। सिब्बल ने जोर दिया कि धनखड़ को किसी पार्टी की तरफदारी करने वाले बयान देने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।”

विवाद का दूसरा पहलू

धनखड़ ने जज यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले को उठाकर न्यायपालिका की जवाबदेही पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि इस मामले में एक महीने बाद भी FIR नहीं हुई, जबकि आम आदमी के लिए जांच तुरंत शुरू हो जाती। धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की इन-हाउस कमेटी को भी असंवैधानिक बताया।

निष्कर्ष

यह विवाद न्यायपालिका, कार्यपालिका, और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन पर एक नई बहस छेड़ गया है। सिब्बल का कहना है कि धनखड़ का बयान संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, जबकि धनखड़ का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। इस मामले में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है, जिससे यह विवाद और गहरा सकता है।

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