8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश हुआ वक्फ संशोधन बिल और 2 अप्रैल 2025 को पेश हुए नए बिल में जमीन-आसमान का फर्क है। पहले ड्राफ्ट में 14 बड़े बदलाव किए गए, जिनमें ज्यादातर सुझाव नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सांसदों ने दिए थे। अगर ये बदलाव न होते, तो वक्फ की संपत्तियों में भारी उलटफेर हो सकता था।
आज हम समझेंगे कि वक्फ संशोधन बिल में नीतीश और नायडू ने क्या-क्या मनवाया, इसका असर क्या होगा, और सरकार क्यों उनकी बात मानने को तैयार हुई। साथ ही, इसके पीछे की मुस्लिम राजनीति को भी डिकोड करेंगे।
सवाल-1: वक्फ संशोधन बिल में JPC के कौन-से 14 बदलाव शामिल हुए?
जवाब: पिछले साल 8 अगस्त को वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में आया था। विपक्ष के हंगामे के बाद इसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) को भेजा गया। JPC में 31 सांसद थे—19 NDA से, 11 विपक्ष से, और एक AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी।
27 जनवरी 2025 को JPC ने बिल को हरी झंडी दी और NDA के 14 सुझावों को मंजूर किया। विपक्ष के सुझाव ठुकरा दिए गए। फिर 19 फरवरी को मोदी कैबिनेट ने इसे पास किया और 2 अप्रैल 2025 को नया बिल लोकसभा में पेश हुआ।
इन 14 बदलावों में नीतीश और नायडू के सांसदों की बड़ी भूमिका रही। आगे कुछ अहम बदलावों को आसान भाषा में समझते हैं।
सवाल-2: ‘वक्फ बाय यूजर’ को पुराने मामलों से नहीं हटाया जाएगा, इसका मतलब क्या?
जवाब: पहले अगर कोई जमीन या इमारत सालों से मस्जिद, कब्रिस्तान या चैरिटी के लिए इस्तेमाल होती थी, तो बिना कागजात के भी उसे वक्फ मान लिया जाता था। इसे ‘वक्फ बाय यूजर’ कहते थे।
पहले ड्राफ्ट में इसे पूरी तरह हटाने की बात थी, यानी पुरानी वक्फ प्रॉपर्टीज भी खतरे में पड़ सकती थीं। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद का कहना था कि 90% वक्फ प्रॉपर्टीज के पास रजिस्ट्रेशन नहीं है। कानूनी एक्सपर्ट फैजान मुस्तफा के मुताबिक, “500-600 साल पुरानी प्रॉपर्टीज के कागज कहां से आएंगे? मुसलमान डर रहे थे कि उनकी मस्जिदें-कब्रिस्तान विवाद में फंस जाएंगे।”
नायडू की TDP के सांसदों ने सुझाव दिया कि पुराने मामलों में ये नियम न लागू हो। JPC ने इसे मान लिया। अब जो प्रॉपर्टी पहले से वक्फ है, वो बनी रहेगी, बशर्ते कोई विवाद या सरकारी दावा न हो।

सवाल-3: जिला कलेक्टर की जगह राज्य सरकार अधिकारी तय करेगी, ये बदलाव क्यों?
जवाब: पहले एक सर्वे कमिश्नर देखता था कि कोई प्रॉपर्टी वक्फ की है या सरकार की। मूल बिल में ये जिम्मा जिला कलेक्टर को देने की बात थी। विपक्ष और मुस्लिम संगठनों ने कहा कि इससे सरकार का दखल बढ़ेगा।
TDP सांसदों ने कहा कि कलेक्टर की जगह राज्य सरकार का सीनियर अधिकारी ये फैसला ले। JPC ने इसे मंजूर किया। अब विवादित प्रॉपर्टी पर राज्य का अधिकारी आखिरी फैसला करेगा। इससे वक्फ ट्रिब्यूनल का रोल कम हुआ और राज्य सरकार की पावर बढ़ गई।
सवाल-4: सेंट्रल पोर्टल पर 6 महीने की डेडलाइन खत्म, इसका क्या मतलब?
जवाब: पहले बिल में कहा गया था कि कानून लागू होने के 6 महीने में सभी वक्फ प्रॉपर्टीज को सेंट्रल पोर्टल पर रजिस्टर करना होगा, वरना कोर्ट में सुनवाई नहीं होगी।
JDU सांसद दिलेश्वर कामैत ने इसमें ढील देने का सुझाव दिया। अब वक्फ ट्रिब्यूनल टाइमलाइन बढ़ा सकता है, बशर्ते प्रॉपर्टी का केयरटेकर ठोस वजह दे। हालांकि, ये वजहें और समय की सीमा साफ नहीं है—ये ट्रिब्यूनल तय करेगा।
2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश होने के दिन श्रीनगर की मस्जिद में नमाज पढ़ते लोग। (फोटो: PTI)
सवाल-5: वक्फ ट्रिब्यूनल में मुस्लिम लॉ एक्सपर्ट जरूरी, ये क्यों?
जवाब: पहले ड्राफ्ट में ट्रिब्यूनल में जिला जज और एक सरकारी अधिकारी की बात थी। JPC ने सुझाव दिया कि इसमें मुस्लिम कानून का जानकार भी हो। वक्फ इस्लामिक परंपरा से जुड़ा है, तो एक्सपर्ट की मौजूदगी से फैसले आसान होंगे। ये सुझाव पास हो गया।
सवाल-6: वक्फ बोर्ड में दो से ज्यादा गैर-मुस्लिम, इसका क्या असर?
जवाब: मूल बिल में वक्फ बोर्ड में कम से कम दो गैर-मुस्लिम मेंबर का नियम था। JPC ने इसे बरकरार रखा और कहा कि ये दो मेंबर पदेन सदस्यों से अलग होंगे। अगर पदेन मेंबर भी गैर-मुस्लिम हुए, तो कुल संख्या दो से ज्यादा हो सकती है।
सवाल-7: क्या सरकार नीतीश-नायडू की बात मानने को मजबूर है?
जवाब: हां, दो वजहों से:
- वक्फ संशोधन बिल को पास करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत चाहिए।
- BJP के पास अकेले बहुमत नहीं है। NDA में TDP (16 सांसद) और JDU (12 सांसद) की बड़ी हिस्सेदारी है। इनके बिना बिल अटक सकता है।
सवाल-8: नीतीश और नायडू मुस्लिम वोट क्यों साध रहे हैं?
जवाब: वजह है इनकी सियासत:
- बिहार: इस साल चुनाव हैं। 17.7% मुस्लिम वोटर्स हैं। 32 सीटों पर 30% से ज्यादा मुस्लिम हैं, जो सरकार बनाने में अहम हैं। JDU मुस्लिम वोट खोना नहीं चाहती।
- आंध्रप्रदेश: 9.5% मुस्लिम वोटर्स हैं। 2024 में TDP को 75% मुस्लिम वोट मिले। नायडू इसे बरकरार रखना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने मुस्लिम संगठनों से बात की और कुछ नियमों को राज्य सरकार के हवाले करवाया।
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